वो आग जो 27 साल से जलने के बावजूद बुझने की बजाये और भयानक होती जा रही हैं

कई बार मेरी माँ अपने एक ममेरे भाई को याद किया करती थी। वो कहती थी की वो बहुत अच्छा लड़का था पर छोटी सी उम्र मे ही उसने आत्महत्या कर ली। मेरी माँ को गुस्सा बहुत कम आता था पर जब भी ये वाकया याद आता तो गुस्से में वीपी सिंह को बहुत कोसती। उस समय इतनी जानकारी नही होती थी पर उनकी बातों से इस बात का अंदाजा लग गया था कि पहले तो उन्होंने आरक्षण की वजह से जान दी थी और दूसरा आम जनता मे वीपी सिंह के लिए बहुत गुस्सा था।

आज वीपी सिंह का जन्मदिन नही हैं और न ही वो मनहूस दिन जब मेरी माँ के भाई ने अपनी जान दी थी। आज वो दिन हैं जब आरक्षण के विरोध की आग ऐसी भड़की थी जो बुझने की बजाय और भड़कती जा रही हैं। आज ही के दिन 19 सितम्बर 1990 को दिल्ली विश्वविद्यालय के एक विद्यार्थी राजीव गोस्वामी ने मंडल कमीशन के विरोध मे खुद को आग लगा दी थी जिससे देश भर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए और कई युवाओं ने अपनी जान दे दी जिसमे एक मेरी माँ के भाई भी थे। कुछ लोगो का दावा हैं की दिल्ली के सबसे व्यस्त मेट्रो स्टेशन राजीव चौक का नाम राजीव गाँधी नही बल्कि राजीव गोस्वामी के नाम पर रखा गया हैं। पर जितना मैंने अपने जीवन मे कांग्रेस के नेताओं को देखा हैं , मुझे कोई शक नही की ये सिर्फ कोरी अफवाह हैं।

मंडल कमीशन की बात करें तो इसकी स्थापना मोरार जी देसाई ने 1979 में की थी। मंडल कमीशन ने सुझाव दिए कि SC/ST को संविधान के तहत दिए २२% आरक्षण के अलावा OBC जातियों को भी 27% आरक्षण मिलना चाहिए जिसमे सिर्फ और सिर्फ OBC लोगों का हक हो। उस समय पहली बार कोई गैर कांग्रेस सरकार बनी थी। सरकार ज्यादा दिन नही चली और इंदिरा गाँधी वापिस सत्ता मे आ गयी। आम तौर पर लोग कांग्रेस को आरक्षण के नाम पर देश को बांटने का दोषी मानते हैं पर पहले इंदिरा गाँधी और बाद मे राजीव गाँधी ने मंडल कमीशन की सलाह को ठन्डे बसते मे डाल दिया। 1989 में जब बीजेपी के बहरी सहयोग से वीपी सिंह की सरकार बनी तब उन्होंने इस जिन्न को बाहर निकाल दिया। देश में चारो तरफ प्रदर्शन हुए और बहुत से लोगों ने अपनी जान दी पर बीजेपी को कोई फर्क नही पड़ा क्योंकि वो तो अपने राम मंदिर मुद्दे में ही व्यस्त थी। सरकार के इस फैसले से कुछ भला हुआ या नही ये नही कह सकते पर इसकी वजह से न सिर्फ सभी जातियों में संघर्ष बढ़ा बल्कि सामान्य वर्ग के प्रतिभाशाली युवाओं को अपना देश छोड़ कर विदेश की राह पकडनी पड़ी।

कुछ दिनों पहले खबर आई की केंद्र सरकार ने OBC आरक्षण में क्रीमी लेयर की आय की अधिकतम सीमा 6 लाख से बढाकर 8 लाख प्रतिवर्ष कर दी हैं। ये बड़ा ही आश्चर्यचकित करने वाला निर्णय था। आरक्षण का मूल उद्देश्य तो जाति के नाम पर दबे कुचले लोगों को उभारना था पर अगर कोई हर माह 40-45 हज़ार कमा रहा हैं तो उसके बच्चों को आरक्षण की जरूरत क्यों हैं? क्या देश मे कोई गरीब OBC नही रह गया हैं जो आरक्षण का लाभ ले सकें? फिर समझ आया कि ये सब मंडल कमीशन की मेहरबानी हैं। कोई दूसरी श्रेणी का नागरिक OBC श्रेणी के इंसान की न नौकरी ले सकता और न ही कॉलेज मे सीट ले सकता हैं तो फिर क्या करें? सरकार ने सोचा कि क्रीमी लेयर का दायरा बढ़ा कर पहले से ही अमीर लोगों को और सुविधाएं दे दी जाएँ। अगर 27 साल बाद भी गरीब OBC के बच्चों को इस लायक नही बनाया जा सका कि वो अपना हक ले सकें और न ही एक गरीब सामान्य वर्ग के बच्चे को उसका हक लेने दिया जा रहा हैं तो किसी नीति की इससे बड़ी असफलता क्या होंगी। दुर्भाग्यवश दोनों सरकार और मंडल कमीशन के सुझाव अपने असली उद्देश्य को पूरा करने मे असफल रहे हैं क्योंकि सरकार ने हर जगह आरक्षण तो दे दिया पर कभी बच्चों की पढाई लिखाई पर ध्यान नही दिया।

आज हरियाणा में जाट आन्दोलन, गुजरात में पाटीदार आन्दोलन और महाराष्ट्र में मराठा आन्दोलन उसी विरोध के ही प्रबल परिणाम हैं जो आज से 27 साल पहले शुरू हुआ था। अब हर जाति इस सामाजिक अन्याय से परिपूर्ण आरक्षण नीति का भाग बनकर अपनी आने वाली पीढ़ियों का भविष्य संवारना चाहती हैं। ये दुर्भाग्य ही हैं की आरक्षण नीति ने देश को ऐसे कगार पर लाकर खड़ा कर दिया हैं जहां पर हर कोई पिछड़ा बनना चाहता हैं। सरकार के ढुलमुल रवैये को देखते हुए ऐसी कोई उम्मीद नही हैं की वो आग जिसने राजीव गोस्वामी और उसके जैसे कई युवाओं को जीते जी जला दिया था वो बुझने वाली हैं, बल्कि आसार तो ये लग रहे हैं की ये आग और भड़केगी और अगर जल्द ही कुछ न किया गया तो सबकुछ लपेटे मे लेती जायेंगी।

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