12 लाख रुपए महीने वाली नौकरी जिसने पूरे देश का मुर्गा बनाया

आपने कभी न कभी रेड़ियो मिर्ची मुर्गा तो सुना ही होगा। रेड़ियो पर, सोशल मीडिया पर या फिर किसी ने व्हाट्सएप्प पर भेज कर सुना ही दिया होगा। अरे वही जिसमे नावेद लोगो को फ़ोन करके बेवकूफ़ बनाता है। मुझे हमेशा ऐसा लगा है कि ये सब बस नाटक होता है और रेड़ियो मिर्ची वाले फ़ोन करने वालो को नही बल्कि अपना चैनल सुनने वालों को ही मुर्गा बनाते है। आखिर कोई इतना बेवकूफ कैसे हो सकता है जो ऐसे ही किसी की वाहियात बातों पर इतना यकीन कर ले कि बहस करता ही जाए। बेवकूफ़ी की भी कोई सीमा तो होती ही होगी।

कुछ दिन पहले ख़बर आयी कि चंडीगढ़ के एक 12वीं कक्षा के लड़के हर्षित शर्मा की नौकरी लग गयी है। 12वीं पास लोगों को नौकरी तो HCL भी दे रही हैं तो इसमें कौन सी बड़ी बात हुई भला। ये ख़बर इसलिए बन गयी क्योंकि नौकरी गूगल में लगी थी और एक तरफ जहां HCL नौकरी देने के 5 लाख मांग रही है उधर गूगल 12 लाख रुपए महीना दे रही थी। लड़का, लड़के के घरवाले, रिश्तेदार, मोहल्ले वाले, स्कूल वाले, अध्यापक गण, चंडीगढ़ प्रशासन, मीडिया वाले सब खुश। मानो जैसे खुशी का अटैक पड़ गया हो सबको। हर्षित भाई ने तो वेब कांफ्रेंस करके मीडिया वालों को इंटरव्यू तक दे डाला। सब अखबारों में, वेबसाइट्स पर बड़े बड़े आर्टिकल छपने लगे कि कैसे एक लड़के ने इतनी कम उम्र में इतनी बड़ी सफ़लता अर्जित की। बस ये मानिए कि ऐसा हाहाकार मचा देश मे की मोदी जी ने अगली “मन की बात” में ज़िक्र कर ही डालना था हर्षित भाई का।

5 दिन तक जश्न का माहौल चलता रहा और जब पूरे चंडीगढ़ में कोई ऐसा बचा ही नही जिसने अपने मनोभाव जाहिर न कर दिए हो तब जाकर एक अंग्रेजी अखबार के पत्रकार ने सोचा कि क्यों न गूगल वालो के विचार भी जान लिए जाएं। आखिरकार वही बाकी थे जिन्होंने अब तक ये नही बताया था कि उन्हें “विलक्षण” प्रतिभा को नौकरी देकर कैसा महसूस हो रहा है। जब उनसे बात हुई तो पता चला कि उन्होंने तो ऐसा कुछ ऑफर दिया ही नही है। बार बार कागज़ खंगालने पर भी कुछ न मिला। कमाल की बात ये थी कि जो गूगल पूरी दुनियां को दुनियां भर की जानकारी देता है, उसको ही खबर न थी की उसके नाम पर देश मे दीवाली मनाई जा रही है।

पर अब जब गुब्बारा फूट ही गया तो जद्दोजेहद ये शुरू हो गयी कि किसके नाम पर पर्चा फाड़ा जाए। बेवकूफ तो सब बने थे और बहुत बड़े वाले बने थे। मीडिया के लिए बेवकूफ बनना और बाकी लोगो को भी बेवकूफ़ बनाना कोई नई बात नही हैं। उनको तो खुद को “सबसे तेज़”, “सबसे भरोसेमंद” बोलने से ही फुर्सत नही, सच झूठ तो कौन सोचेगा। प्रशासन के लिए जरूर इज़्ज़त की बात हो गयी थी जो उन्होंने स्कूल की बात पर अंधविश्वास करके अपनी किरकिरी करा ली थी। जब उन्होंने स्कूल प्रिंसिपल को पकड़ा तो पता चला कि उनको तो हर्षित ने ऑफर लेटर की व्हाट्सएप्प पर एक फ़ोटो भेजी थी और बाकी सब जानकारी फ़ोन पर दी थी। ये भी सुनने में आया कि जब हर्षित ने थोड़ी समझदारी दिखाते हुए अमेरिका वाले फ़ोन नंबर पर कॉल किया था तो कॉल लगी नही थी पर बाद में देखेंगे सोचकर इग्नोर कर दिया था। अब कोई ये समझाये की जब बुलाने वालो का फ़ोन ही नही लग रहा था तो अमेरिका क्या ईमेल में बैठ कर जाने वाले थे। खैर प्रशासन ने मामले की जांच शुरू कर दी है क्योंकि खानापूर्ति को वही बचा है और हर्षित भाई के बारे में बताया जा रहा है कि वो मानसिक अवसाद की वजह से अस्पताल में भर्ती हो गए हैं। लगे हाथ ज़रा आप भी एक नज़र दौड़ा लीजिये उस ऑफर लैटर पर जिससे ये सब हंगामा शुरू हुआ। देखते ही आप का भी माथे पर हाथ मारकर ये बोलने का मन करेगा कि जब इतने पढ़े लिखो का ये हाल है तो क्या होगा इस देश का। सही में अपने देश मे किसी चीज़ की कोई सीमा नही है।

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